तोसों लाग्यो नेह रे प्यारे, नागर नंद कुमार।

, नागर नंद कुमार।

मुरली तेरी मन हर्यो, बिसर्यो घर-व्यौहार॥

जब तें सवननि धुनि परि, घर आँगण न सुहाइ।

पारधि ज्यूँ चूकै नहीं, मृगी बेधी दइ आइ॥

पानी पीर न जानई ज्यों मीन तड़फि मरि जाइ।

रसिक मधुप के मरम को नहिं समुझत कमल सुभाइ॥

दीपक को जो दया नहिं, उड़ि-उड़ि मरत पतंग।

‘मीरा’ प्रभु गिरिधर मिले, जैसे पाणी मिलि गयो रंग॥

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