दो दिन के सब ठाठ है दो दिन की ये शान
भजले हरी हरी सुन राजा भजले हरी हरी…….
दाम बिना निर्धन दुखी तृष्णा वश धन वान
कहू न सुख संसार में सब जग देखा चान
भजले हरी हरी सुन राजा भजले हरी हरी…….
सर्व नाश के मूल है ये सब भोग विलास खारे पानी से भुजे कब अमृत की प्यास
भजले हरी हरी सुन राजा भजले हरी हरी…….
कल राजा कोई और था कल होगा कोई और सदा किसी के शीश पर कभी रहे न मान,
भजले हरी हरी सुन राजा भजले हरी हरी…….
कोई तेरे पाप का भाग न बाँटन हार पश्तायेगा मोत जब आएगी द्वार
भजले हरी हरी सुन राजा भजले हरी हरी…….
Author: Unkonow Claim credit