सिंदूर लगाते सिर पे सिया जी को पाया है
अंजनी के लला को कुछ समझ में ना आया है
बोले न सिंदूर तूने क्यों सिर पे लगाया है
लम्बी उमर होती सुहाग की सिया जी ने समझाया है
सिंदूर को तन पे डाले अंजनी के लाल रे
सिर से पाओ तक बजरंगी हो गए लाल रे
रोम रोम राम नाम का सिंदूर लगाया है
लम्बी उमर होती सुहाग की सिया जी ने समजाया है
सिंदूर लपटे झूमे नाचे उमंग में,
रंगे हनुमान प्रभु राम जी के रंग में
देख भगती राम जी ने सीने से लगाया है
लम्बी उमर होती सुहाग की सिया जी ने समझाया है
Author: Unkonow Claim credit