तर्ज – घर आया मेरा परदेसी, प्यास बुझी मेरी अखियन की…….

कर सेवा गुरु चरणन की, युक्ति यही है भव-तरणन की…..

गुरु की महिमा है भारी, वेग करे भव जल पारी,
विपदा हरे ये तन-मन की,
कर सेवा गुरु चरणन की…..

मन की दुविधा दूर करे, ज्ञान भक्ति भरपूर करे,
भेद कहे शुभ कर्मन की,
कर सेवा गुरु चरणन की……

भेद भरम सब मिटा दिया, घट में दर्शन कर दिया,
ऐसी लीला दर्शन की,
कर सेवा गुरु चरणन की……

गुरु दयालु होते है, मन के मेल को धोते है,
मोह हटावे विषयन की,
कर सेवा गुरु चरणन की…..

गुरु चरणों में झुक जावें, भक्त कहे नित गुण गावें,
करूं वंदना चरणन की,
कर सेवा गुरु चरणन की……

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