गुरु गोविन्द एक ही रूप सदा, नहिं द्वैत का नाम निसान रहा,
गुरु रूप से मार्ग दिखाय दिया, और गोविन्द रूप हिय में बसा,
सुख मूल सदा भरपूर भरा, नहि अस्त उदय का भान रहा,
निजानन्द मिला गुरु की कृपा, अनुभव नित्य कमल खिला हो रहा ।

हे गुरु देव आपको क्या दू वस्तु में उपहार में,
मगन हुई हूं भगवान में तो आपके उपकार में,
आपके उपकार में, आपके उपकार में,
हे गुरु देव आपको क्या……

जो उपकार किये गुरु मुझपे, तनिक नहीं बिसराऊंजी,
अपने तनकी मृगछालाकर, चरणोमांहि बिछाऊंजी,
बदला नहीं चुका सकती मैं, लाखों ही अवतार में,
हे गुरु देव आपको क्या……

तन मन प्राण पंचभूतों का, तीनो ही गुण संगा जी,
धन जन धाम ससृत होवें, जैसे बहती गंगा जी,
पांचों इन्द्रिय अन्तःकरण संग, मेरा क्या संसार मे,
हे गुरु देव आपको क्या……

विकृत में को दूर हटाकर, आतम की में दीनी जी,
अस्थि भांति प्रिय सागरमांही, सच्चीनिष्ठा कीनीजी,
दीन हीनता हर सारी, पूरणता दई विचार में,
हे गुरु देव आपको क्या……

दूर किया अज्ञान अंधेरा, हृदय चिराग जला करके,
सभी दुखों का अन्त हो गया, संग आपका पाकर के,
द्वैतभाव तज कमलेश्वर, अब मग्न है अपने आपमें,
हे गुरु देव आपको क्या दू वस्तु में उपहार में……….

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