चरना दा अमृत पी लो जी
सर दाता दे दर रख लो जी
चरना दा अमृत पी लो जी

गुरु जी साड़े अंत सहाई
गुरु जी नाल ही प्रीत लगाई
प्यास जन्मा आके बुजा लो जी
चरना दा अमृत पी लो जी

तुम सा ठाकुर कोई न पाया ,
मुख से माँगा सब कुछ पाया ,
सुमिरन कर अलख जगा लो जी
चरना दा अमृत पी लो जी

तू ही रेह्भर तू ही विध्याता तेरी रजा विच रेहना दाता,
आके चोकठ ते मस्तक जुका लो जी
चरना दा अमृत पी लो जी

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